सरकारी अस्पताल में टीबी का इलाज कराने से हुए स्वस्थ,आर्थिक राहत भी मिली

-सैलून चलाकर गुजारा करने वाले कैलाश ठाकुर के घर में लौटीं खुशियां

-छह महीने के इलाज में हो गए स्वस्थ, सरकार से सभी सहायता मिली


बांका, 11 दिसंबर-


 रजौन प्रखंड के बामदेव गांव के रहने वाले कैलाश ठाकुर (41) सैलून चलाकर किसी तरह परिवार का गुजारा करते हैं। एक साल पहले वह टीबी की चपेट में आ गए थे। खुद पर परिवार चलाने की जिम्मेदारी थी, इस वजह से पहले निजी अस्पताल में बेहतर इलाज कराने के लिए सोचा। यह सोचकर निजी अस्पताल चले गए, इलाज कराने के लिए। लेकिन वहां पर जब ज्यादा खर्च होने लगा तो आखिरकार मायागंज अस्पताल का रुख किया। वहां पर इन्हें नजदीकी  सरकारी अस्पताल में इलाज कराने की सलाह मिली। इसके बाद उन्होंने रजौन स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज शुरू करवाया। सिर्फ छह महीने के इलाज में ही वह स्वस्थ हो गए और अब फिर से सैलून चलाकर अपने परिवार का गुजारा कर रहे हैं।

कैलाश ठाकुर कहते हैं कि सार्वजनिक तौर पर दुकान चलाने के कारण टीबी होने से मैं तो डर ही गया था। मेरे मन में यह डर था कि कहीं लोग सैलून आना नहीं छोड़ दें । ऊपर से घर के अन्य सदस्यों में भी बीमारी नहीं फैल जाए, यह सोचकर मैं डरा रहता था। यही वजह है कि मैं इलाज के लिए पहले निजी अस्पताल गया, लेकिन वहां पैसे भी ज्यादा खर्च हो रहे थे और फायदा भी नहीं हो रहा था। इसके बाद मैं क्षेत्र के सबसे बड़े अस्पताल भागलपुर के मायागंज स्थित जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल गया। वहां के डॉक्टर ने मेरी बीमारी  पहचान ली और घर के नजदीक स्थित सरकारी अस्पताल में इलाज कराने के लिए कहा। इसके बाद रजौन स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज करवाया। वहां पर छह महीने तक इलाज चला तो मैं ठीक हो गया। इलाज के दौरान मेरा एक भी पैसा नहीं लगा। जांच औऱ इलाज तो मुफ्त में हुआ ही, साथ में दवा भी मुफ्त में मिली। इसके साथ-साथ जब तक मेरा इलाज चला मुझे पांच सौ रुपये प्रतिमाह पौष्टिक आहार के लिए राशि भी मिली।

लगातार निगरानी होने से मरीज जल्द हो जाता है ठीकः कैलाश ठाकुर कहते हैं कि सरकारी अस्पताल में इलाज तो बेहतर होता ही है, साथ में वहां के लोग लगातार हालचाल भी पूछते रहते हैं। दवा का नियमित तौर पर सेवन करने के लिए भी प्रोत्साहित करते रहते हैं। इसका यह फायदा होता है कि लोग दवा बीच में नहीं छोड़ते । इस कारण लोग जल्द ठीक भी हो जाते हैं। लैब टेक्नीशियन शंभूनाथ कुमार कहते हैं कि सरकारी अस्पताल में न सिर्फ बेहतर जांच और इलाज होता है, बल्कि मरीजों की लगातार निगरानी भी होती । दरअसल, स्वास्थ्य विभाग 2025 तक जिले को टीबी से मुक्त बनाना चाहता , इसलिए अगर कोई टीबी का मरीज निकलता  तो हमलोगों बड़ी जिम्मेदारी से उसे स्वस्थ करने में मदद करते हैं। हमलोगों के मन में यह आशंका रहती है कि यदि वह ठीक नहीं होगा तो दूसरे को भी संक्रमित कर देगा। इस वजह से हमलोग लगातार निगरानी करते   और मरीज जल्द ठीक हो जाता है।

रिपोर्टर

  • Dr. Rajesh Kumar
    Dr. Rajesh Kumar

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