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-छह महीने तक चला इलाज, नियमित तौर पर दवा का किया सेवन
-जांच से लेकर इलाज तक मुफ्त, साथ में दवा और राशि भी दी गई
बांका, 7 दिसंबर। रजौन प्रखंड के मकरामदी गांव की रहने वाली अमना खातून लगभग आठ महीने पहले टीबी की चपेट में आ गई थी। घरवाले चिंतित रहने लगे थे। उनके मन में बीमारी को लेकर तो डर था ही, साथ में सामाजिक प्रतिष्ठा को लेकर भी चिंतित थे। किसी को पता नहीं चले, इस वजह से निजी अस्पताल में ही इलाज करना उचित समझा, लेकिन काफी दिनों के इलाज के बाद जब ठीक नहीं हुई तो अमना खातून खुद सामने आई और परिजनों को यह बात बताया कि सरकारी अस्पताल में टीबी का बेहतर इलाज होता है। मैं वहीं पर इलाज करवाउंगी। इसके बाद रजौन स्थित प्रखंड स्तरीय सरकारी अस्पताल में उसका इलाज शुरू हुआ और छह महीने में वह ठीक हो गई।
इलाज से संबंधित सभी कुछ मुफ्त मिलाः अमना कहती है कि मैंने टीबी, रेडियो और अखबारों के जरिये यह पढ़ा और सुना था कि सरकारी अस्पताल में टीबी का बेहतर इलाज होता है। शुरुआत में तो मैं घरवाले की सलाह पर निजी अस्पताल इलाज कराने के लिए गई, लेकिन जब वहां पर इलाज कराने के बावजूद कोई सुधार नहीं हुआ तो मैंने परिजनों को सरकारी अस्पताल में इलाज करवाने के लिए राजी किया। फिर मेरा इलाज शुरू हुआ। छह महीने में मैं ठीक हो गई। जब तक मेरा इलाज चला, तब तक सरकारी अस्पताल के लोग मुझ पर निगरानी रखते थे। मेरा हालचाल पूछते थे औऱ नियमित तौर पर दवा के सेवन करने के लिए कहते थे। इसका असर पड़ा। मैं लगातार दवा लेती रही। इसी का परिणाम रहा कि मैं जल्द ठीक हो गई। जांच और इलाज में मेरा एक भी पैसा नहीं लगा। दवा भी मुफ्त में मिली। ऊपर से जब तक इलाज चला, तब तक मुझे पांच सौ रुपये प्रतिमाह पौष्टिक आहार के लिए भी मिली।
मरीजों पर लगातार रखी जाती है नजरः लैब टेक्नीशियन चंद्रशेखर कुमार कहते हैं कि यहां पर हमलोग टीबी के मरीज का बेहतर इलाज करते हैं। जांच के बाद अगर पुष्टि हो जाती है कि टीबी के मरीज हैं तो तत्काल इलाज शुरू हो जाता । इलाज के साथ-साथ हमलोग मरीजों की सेहत पर लगातार नजर रखते हैं। इस वजह से मरीज जल्द ठीक हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि दरअसल, निजी अस्पताल में इलाज के बाद मरीजों पर नजर नहीं रखी जाती है। अपना मन किया तो दवा का सेवन किया। नहीं तो कुछ लोग दवा छोड़ भी देते हैं। लेकिन सरकारी अस्पताल में ऐसा नहीं होता है। यहां हमलोग लगातार मरीजों पर नजर रखते हैं। बीच-बीच में हालचाल लेते रहते इस वजह से मरीज जल्द दवा नहीं छोड़ते हैं। यही कारण है कि सरकारी अस्पताल में इलाज कराने वाले मरीज जल्द ठीक हो जाते हैं। लोगों से मेरी यही अपील है कि अगर टीबी के लक्षण दिखे तो पहले सरकारी अस्पताल ही इलाज के लिए जाएं।
रिपोर्टर
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Aishwarya Sinha